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उफ! ये स्टूडेंट लाइफ -2 (चैप्टर 1)


नेत्रा

बेंच पर बैठे हुए मुझे इतनी देर हो गई जितना समय मुझे आज मैथ्स की एक्सरसाइज करते हुए बीत गया। जब सवाल बवाल मचाते हैं, तो दिमाग के साथ पूरा शरीर टेंशन में हो जाती है। ऐसा ही कुछ मुझे हुआ। पहले मैं अपने भाई को सवालों से भागते देखकर उसे सलाह देती थी, लेकिन जब से मैं नवीं में आयी हूँ, सब बदल गया। किताबें पहले से मोटी हो गई हैं। नोट्स बनाने पड़ते हैं। ट्यूशन भी पढ़ना है। लगता है लाइफ बदलनी शुरू हो गई है।

 बट एनीवेज आई विल डू इट!

 “हे पोनी-टेल आज फिर यहाँ।” मैंने उसे अपने कँधे पर कोहनी से जोर देते हुए पाया। फिर उसने मेरी गर्दन में हाथ डाला और बैठ गई।

 “स्मिता, कभी-कभी लगता है लाइफ सक्स (Life Sucks)।” दोनों पैरों को झुलाते हुए मैं बोली।

 उसने कँधे उचकाये। मुझे अजीब तरह से देखा, मुँह पिचकाया और बोली, “तुम्हें नहीं लगता कि पिछले कुछ साल कितने मजे में गुजर गए। न पढ़ाई की उतनी फिक्र, न इतना सिलेबस।”

 “और हाँ, एक चीज और।” स्मिता ने मेरी आँखों में आँखें डालीं, कहा, “खडूस टीचर्स।”

 उस दिन सौरभ सर ने स्मिता को इसलिए डाँटा क्योंकि उसे हिचकी आ गई थी। भला यह भी कोई जानबूझकर करता है। हिचकी आना तो आम बात है। उससे भी बड़ा खडूसपना उन्होंने मेरे साथ किया जब मुझे छींक आ गई।

 “नेत्रा यह क्या है? डोन्ट डिस्टर्ब द क्लास। बाहर जाओ और जीभर छींको।” सौरभ सर का यह डायलॉग सुनकर मानो मेरा खून खौल गया था। खुद पर गुस्सा भी आ रहा था कि छींक क्यों आई। 

 भला छींक भी कोई रोकने की चीज है। खडूस कहीं के!

 “तुम उस दिन के बाद से ऐसे टीचर्स से दो गज की दूरी बनाकर रखती हो न।” स्मिता ने इस बार दोनों बाजू मेरे कँधों पर टिका दिया। अब हम एक-दूसरे की आँखों में झाँक सकते थे। 

 “हाँ, मैं क्या हर कोई अपना दिन खराब क्यों करेगा।”

 “बात तो सही है।”

 लंच-ब्रेक के दौरान हम चार सहेलियाँ अक्सर एक पेड़ के नीचे वाली बेंच पर बैठ जाती हैं और आधे दिन के किस्से शेयर करते हैं। आज पिंकी नहीं आई थी। आरोही हमारे गैंग में कुछ दिन पहले ही शामिल हुई है। आठवीं में तो उसका फ्रेंड-सर्कल बड़ा ही अजीब था। वह क्लास की सबसे बातूनी बैक-बेंचर्स की टीम में थी।

आरोही की चर्चा ही की कि वह कुछ चबाती हुई चली आ रही थी। उसके पतले होठ देखकर कभी-कभी लगता है जैसे उन्हें किसी दिन उसने आटा-चक्की के पाटों के बीच में रखकर दबा दिया होगा। या भगवान ने उसे श्राप दिया होगा जब वह किसी को होठ भींचकर चिड़ा रही होगी। या फिर...जस्ट लीव इट!

 "हे गर्ल्स, हाऊ आर यू?" आरोही ने आँखों को गोल-गोल घुमाते हुए कहा। "गिव मी सम स्पेस।" उसके लिए हमने पहले ही जगह बना ली थी।

कम ऑन यार! तुम इतनी दुबली हो कि बर्गर में पेटीज़ की जगह कोई तुम्हें रख सकता है, और किसी को पता भी नहीं चलेगा। 

वह दुबली है, पर उसका दिमाग तेज दौड़ता है ठीक उसकी चाल की तरह। उसे हम लेडी-बॉस भी कहते हैं क्योंकि वह थोड़ी देर में ही हम सब पर हावी हो जाती है।

"ऐ तुम मेरी सुनो। जो मैं बोल रही हूँ ध्यान से सुनो।" यह डायलॉग आरोही अकसर बोलती है। ऐसा लगता है जैसे हम उसके अंडर काम करते हैं। लेकिन गोल-मटोल चेहरे वाली और ग्लो एण्ड लवली क्रीम लगाने वाली हमारी जान है वह। दोस्ती इतनी जल्दी रंग पकड़ लेगी मालूम न था।

"मैं जानती हूँ तुम यहाँ कुछ न कुछ खिचड़ी पका रहे हो।" वह बोली। 

स्मिता ने मुझे आँख मारी, मैंने उसे कोहनी। तीस सेकेण्ड नहीं लगे होंगे, आरोही भी कूद पड़ी। उसने मेरी चोटी को खींचा, मैं चीखी,"छोड़, कमबख्त चोटी छोड़।" 

मस्ती का मूड ऐसा बना कि खींचा-खाँची चल निकली। पता नहीं क्या था कि हमें इसमें आनंद आ रहा था। 

"तुम्हारे नाखून।" मैं चिल्लाई। "चुड़ैल हो क्या?"

सच में स्मिता के नाखून हम तीनों से लंबे हैं। वह उन्हें बढ़ाना चाह रही है लेकिन प्रिंसिपल मैम ऐसा नहीं होने देंगी। उन्हें अभी पता नहीं चला है। जिस दिन ऐसा हुआ, समझो उसकी शामत आ गई। वह फैशन से इतना लगाव करती है कि पहले सुष्मिता सेन की एक टीवी सीरीज़ को देखकर अपना हेयर-स्टाइल बदल लिया था। भला आँख पर बाल आने क्यों चाहिए। मुझे घिन है ऐसी लड़कियों से जो बालों को माथे से लटकाकर आँख तक ढक लेती हैं। फिर चाहे बाद में नज़र वाले चश्मे क्यों न लग जाएँ। हद है ऐसी लड़कियों से!

"देखो खून।" आरोही ने मेरी बाँह पर खून देखा। 

एक बार को मैं सहम गई, लेकिन वह तो नाखून की गहरी खरोंच से हुआ था। मेरा मुँह सिकुड़ गया, गहरी साँस लेते हुए मैं बोली,"यह सही नहीं किया तुमने आरोही। आज खून निकाल ही दिया मेरा।"

"जानती हो एक बूँद की कितनी कीमत है।" मैंने बोलना जारी रखा। "भुगतान करो अब।"

आरोही ने अपनी पीठ मेरी ओर कर दी। मैंने एक मुक्का बड़े ही प्यार से उसे जड़ दिया।

"उई! माँ, मार डाला।" वह मजाक में चीखी।

स्मिता ने मेरी चोटी को फिर से बाँधना शुरू किया।

"आराम से... बाल उखाड़ने का इरादा है क्या।" मैं चिल्लाई। मुझे ऐसा करते आदित्य ने देख लिया था जिसे मैंने मुसकराते हुए देखा। फिर मेरा ध्यान क्लास में रखे मेरे बस्ते पर गया। 

"ओह! मर गए।" अधबनी चोटी के साथ ही मैं क्लासरूम की तरफ दौड़ी। l


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