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हम क्यों इतनी बातें करते हैं...


हम इतनी बातें करते हैं
जैसे ज़िंदगी में हौसला भरते हैं

अक्सर लगता है कुछ अधूरा सा
मन की करके उसे पूरा करते हैं

हम जाने क्यों इतनी बातें करते हैं
उदासियों में भी रंग भरते हैं

कुछ अपनी, कुछ दूसरों की यादें हैं
फूल जैसे ठसक से बिखरते हैं

हम हर बार क्यों इतनी बातें करते हैं
इश्क़-मोहब्बत से इतना क्यों डरते हैं

तुम्हें कोई मिल जाएगा किसी दिन
रिश्ते थोड़े ही ऐसे एकाएक बना करते हैं

हम फिर भी हर बार क्यों इतनी बाते करते हैं
छुपाते नहीं, दिल खोल इज़हार करते हैं

हाल करीब एक-जैसा है, फिर भी जाने क्यों
कुछ दबा कर, दिखावा भी करते हैं

हम करते हैं खूब बातें, पर क्यों करते हैं
खड़े हैं बीच समन्दर, लहरों से नहीं डरते हैं

  - हरमिंदर चहल.


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